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पुण्य और पाप : आम्नव के रूप में ६३७ अशुभ परिणामों तथा क्रियाओं के आधार पर पापानव-निर्देश
इसी प्रकार शास्त्रों में पापकर्म (अशुभ कर्म) के उपार्जन के १८ प्रकार (स्थान) बताए हैं-(१) प्राणातिपात, (२) मृषावाद, (३) अदत्तादान, (४) मैथुन, (५) परिग्रह, (६) क्रोध, (७) मान, (८) माया, (९) लोभ, (१०) राग, (११) द्वेष, (१२) कलह, (१३) अभ्याख्यान, (१४) पैशुन्य (चुगली), (१५) परपरिवाद, (१६) रति-अरति, (१७) मायामृषा (दम्भ या ढोंग), और (१८) मिथ्या-दर्शन शल्य। इन अठारह पापस्थानों (पापवृद्धि के कारणों) से अशुभ (पाप) कर्म का आसव होता है।' दानादि शुभ क्रियाओं तथा शुभपरिणामों के आधार पर पुण्यानव का उपार्जन
इसी प्रकार स्थानांगसूत्र' में पुण्योपार्जन के नौ प्रकार का उल्लेख है(१) अन्नपुण्य-भोजनादि देकर किसी भूखे व्यक्ति की भूख मिटाना। (२) पान-पुण्य-पानी पिलाकर तृषा-पीड़ित व्यक्ति की प्यास मिटाना। (३) लयनपुण्य-बेघरबार को आश्रय के लिए मकान देना अथवा सार्वजनिक
धर्मशाला आदि बनवाना। (४) शयन-पुण्य-शय्या, बिछौना आदि सोने की सामग्री देना। (५) वस्त्रपुण्य-सर्दी से ठिठुरते हुए को या वस्त्रहीन को वस्त्र देना। (६) मनपुण्य-मन से शुभ विचार करना। दूसरों के मंगल के लिए भावना करना। (७) वचनपुण्य-प्रशस्त एवं शुभ तथा सन्तोष भरे वचन बोलना, अच्छी सलाह देना। (८) कायपुण्य-रोगी, दुःखित, पीड़ित आदि की काया से सेवा करना, श्रमदान देना। (९) नमस्कार-पुण्य-गुणिजनों एवं महापुरुषों के प्रति श्रद्धाभक्तिवश नमस्कार
करना। - इसी प्रकार भगवती सूत्र में भी अनुकम्पा, सेवा, परोपकार आदि शुभप्रवृत्तियाँ पुण्योपार्जन की कारण बताई हैं। मामसिक-वाचिक-कायिक शुभ-अशुभ-आनव के लक्षण :: ‘इसी सन्दर्भ में, राजवार्तिक में मानसिक, वाचिक एवं कायिक शुभ-अशुभ आसव (पुण्य-पाप) के पृथक्-पृथक् लक्षण बताते हुए कहा गया है-हिंसा, असत्य, चोरी एवं कुशील (अब्रह्मचर्य) में प्रवृत्ति अशुभ कायास्रव है और इनसे निवृत्ति शुभकायानव
१. · देखें-अठारह पापस्थान का वर्णन : आवश्यक नियुक्ति, प्रतिक्रमणसूत्र आदि आगमों में। २. (क) “नवविधे पुण्णे पण्णत्ते तं जहा-“अन्नपुण्णे, पाणपुण्णे, वत्थपुण्णे, लेणपुण्णे, सयणपुण्णे, .
मणपुण्णे, वइपुण्णे, कायपुण्णे, णमोक्कारपुण्णे।" -स्थानांगसूत्र, स्थान ९, सू. २५ (ख) भगवती सूत्र ७/१०/१२१
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