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कर्म आने के पाँच आस्रव द्वार ५९९
सकता है।' मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इनमें से प्रत्येक का अपना-अपना चित्त है। इन पाँचों चित्तों (भावानव की शक्तियों) का जैसा-जैसा निर्माण होता जाता है, वैसे-वैसे मन्द-तीव्र ये चित्त (भावासव) होते रहते हैं। और ये चित्त जिस प्रकार के होते हैं, उन्हीं भावानवों (भावचित्तों) के अनुसार द्रव्यचित्तों-पौद्गलिक चित्तों (द्रव्यानवों-द्रव्यकों) का निर्माण होता जाता है।
निष्कर्ष यह है कि भावासवों (इन पाँच चित्तों) के बिना न तो कर्मों का आकर्षण हो सकता है और न ही उन्हें विशेष रूप दिया जा सकता है। ये दोनों ही कार्य भावानव (भावचित्त) के बिना नहीं हो सकते। योगों की चंचलता को रोकने के लिए पूर्वोक्त चारों आम्रवों से सावधान रहना आवश्यक
फिर भी इतना अवश्य समझ लेना चाहिए कि तब तक मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय, ये चारों आसव अस्तित्व में रहते हैं, तब तक योगों की चंचलताओं को न तो रोका जा सकता है और न ही चंचलता के चक्र को मन्द किया जा सकता है। योगों की चंचलता के साथ इन चारों आसवों के रहने पर आत्मभवन में इन पाँचों द्वारों से तेजी से कर्मों का आगमन और प्रवेश चालू हो जाता है।
फिर चंचलता का चक्र इतनी तेजी से चलने लगता है कि व्यक्ति एकाग्र होकर एकान्त शान्त स्थान में ध्यान करने बैठता है, तो कभी विविध इच्छाओं का ज्वार उमड़कर आता है, कभी आत्महित के विरुद्ध सोचने लग जाता है, कभी प्रमाद आकर घेर लेता है, व्यक्ति अपने उद्देश्य और ध्यानविधि को भूलकर उत्पथ में भटक जाता है, तो कभी कषायों की ज्वाला अन्तरात्मा में भड़क उठती है, और साधक को शुभ ध्यान से भटका देती हैं। धर्मध्यान एक ओर धरा रह जाता है, व्यक्ति आर्तरौद्रध्यान के चक्कर में फंसकर संकल्प-विकल्पों के ताने-बाने बुनने लगता है। ... इसलिए आत्मार्थी एवं मुमुक्षु साधकों को मन-वचन-काया की चंचलता पैदा करने और बढ़ाने वाले तथा विविध अशुभ कर्मों को खींचकर आत्मभवन में प्रविष्ट कराने वाले इन पाँचों आम्रवद्वारों से सावधान रहना चाहिए।' योगों की चंचलता को कम करने के लिए प्रतिपक्षी को अपनाना आवश्यक - जिज्ञासु और मुमुक्षु साधकों को कर्मविज्ञान के इन गूढ़ रहस्यों को समझना चाहिए और योगों की चंचलता को कम करने के लिए मिथ्यात्व को छोड़ने और सम्यक्त्व को ग्रहण करने, अविरति को छोड़ने और विरति को स्वीकार करने, तथैव प्रमाद को
१. चेतना का ऊर्ध्वारोहण पृ. १३८-१३९ २. कर्मवाद पृ. ५०
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