________________
प्रमुख आचार्य एवं साधुगण बीसवीं शताब्दी की प्रमुख सामाजिक घटनाओं में दिगम्बर मुनि परम्परा का पुनर्जीवित होना है। सर्वप्रथम आचार्य श्री आदिसागर जी महाराज ( अंकलीकर) ने दिगम्बर मुनि मार्ग को प्रशस्त किया। इन्होंने सन्1913 में कुंथलगिरि में स्वयं ने निग्रन्थ दीक्षा धारण की । सन् 1943 में इन्होंने नश्वर शरीर का त्याग किया। उत्तर भारत में आचार्य शान्तिसागर "(छाणी)" ने सन् 1923 में मुनि दीक्षा ग्रहण की। दक्षिण में आचार्य शान्तिसागर जी ने सन् 1927 में मुनि व्रत धारण किये। दोनों ही आचार्यों ने उत्तर भारत में व्यापक विहार विच्या नावः साज में नामनि विहार के प्रति जो आशंकायें थी उन्हें दूर किया। आचार्य शान्तिसागर (दक्षिण) अपने विशाल संघ के साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश, देहली, बिहार, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र प्रदेश के विभिन्न नगरों में विहार करते हुये वीतराग धर्म का प्रचार करते रहे। आचार्य श्री ने बम्बई नगरी में विहार किया और नग्नता विरोधी कानून का उल्लंघन किया । अन्त में जब उन्होंने समाधिमरण पूर्वक मृत्यु का आलिंगन किया तो हमारे देश के साथ-साथ विश्व ने भी जाना कि जैन साधु मृत्यु का किस प्रकार वरण करते हैं।
आचार्य श्री के समाधिमरण को लगभग 35 वर्ष हो गये। इन वर्षों में श्रावकों में मुनि बनने की ललक बढ़ी है और वे मुनि मार्ग को अपनाने लगे है। इन वर्षों में आचार्य कुंथुसागर जी, आचार्य दीर सागर जी, आचार्य शिवसागर जी, आचार्य सूर्यसागर जी, आचार्य महावीरकीर्ति जी, आचार्य धर्मसागर जी, आचार्य देशभूषण जी, आचार्य अजितसागर जी, मुनि समन्तभद्र जैसे प्रभावक आचार्य हुये जिन्होंने अपने त्याग एवं तपस्या से जैन एवं जैनेतर समाज का मन जीत लिया। वर्तमान में 32 आचार्य, 11 उपाध्याय, 130 मुनिजन, 154 आर्यिकायें, 22 ऐलक, 80 क्षुल्लक एवं 45 क्षुल्लिकायें विद्यमान है। ब्रह्मचारी, ब्रहमचारिणियाँ, भट्टारकगण इस संख्या में सम्मिलित नहीं है। इस तरह वर्तमान में 500 से भी अधिक साधुजन विद्यमान है। देश के सभी प्रदेशो में मुनियों का विहार होने लगा है तथा पंजाब से मृद्रास तक और महाराष्ट्र से नागालैण्ड तक साधुजन विहार करते है और जन-जन को अहिंसा एवं सदाचरण का सदुपदेश देते रहते हैं।
वर्तमान समय (सन् 1990) में जितने आचार्य एवं अन्य साधु परमेष्ठी है उनमें निम्न साधुगण प्रमुख है जिनका राष्ट्रीय व्यक्तित्व है तथा पूरे समाज के इतिहास निर्माण में योगदान रहता है : 01. परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज 02. परमपूज्य आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज 03. परमपूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज . 04. परमपूज्य आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज 05. परमपूज्य आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज 06. परमपूज्य आचार्य श्री कुंधुसागर जी महाराज 07. परमपूज्य आचार्य श्री समति सागर जी महाराज 08. परमपूज्य आचार्य श्री पुष्पदन्त जी महाराज