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34/जैन समाज का वृहद् इतिहास
प्रवृत्तियों के कारण तथा निर्ग्रन्थ साधुओं की उपेक्षा करने के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग उनका सदा ही विरोधी बना रहा। समाज में सामंजस्य स्थापित न होकर विरोध का वातावरण बना रहा। उनका निधन दिनांक 28/11/80 को बम्बई में हो गया।
नवे दशक में हमारे परमपूज्य आचार्यों का एक के बाद एक समाधिमरण होना इस दशक की सबसे बड़ी दुखद घटना है। परम पूज्य आचार्य धर्मसागर जी महाराज का समाधिमरण दि. 22/04/87 को सीकर (राजस्थान) में हो गया। आचार्य श्री जैन समाज में आचार्य शान्ति सागर जी की परम्परा के तृतीय पट्टाधीश आचार्य थे। उनकी महान तपस्या, अक्खड़ स्वभाव, विशाल मुनि संघ, अनुशासन सभी उल्लेखनीय थी। उनके समाधिमरण से समाज ने एक महान सन्त खो दिया। आचार्य धर्मसागर जी के महाप्रयाण के पश्चात् आवार्य देशभूषण जी का दिनांक 28 मई, 1987 को कोयली में समाधिमरण हो गया। आचार्य देशभूषण जी भी अलौकिक सन्त थे तथा समाज पर उनका जादू जैसा असर था। जयपुर का चूलगिरी अतिशय क्षेत्र एंव कोथली का दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र उन्हीं की प्रेरणाओं का सुफल है। दोनों आचार्यों के समाधिमरण से उत्पन्न गहरी खाई अभी परी भी नहीं भरी थी कि 6 मई 1988 को आचार्य कल्प 108 श्री श्रुतसागर जी महाराज का लणवा (राजस्थान) में समाधिमरण हो गया। उनकी समाधि को देखने के लिये लाखों जनसमूह उमड़ गया। इसके पश्चात् 18 अगस्त, 1988 को कुभोज में आचार्य समन्तभद्र जी महाराज का समाधिमरण हो गया। उनकी आयु 97 वर्ष की थी। महाराष्ट्र में गुस्कुलों का संचालन एवं तीर्थ क्षेत्र कमेटी को आर्थिक सहयोग प्रदान करने में उनका महान् योग माना जा सकता है। इसके पश्चात् आचार्य अजित सागर जी महाराज का समाधिमरण हो गया जिससे समाज को और भी धक्का लगा।
नवे दशक में 3 अगस्त 1983 को सर सेठ भागचन्द सोनी का निधन साहू शान्ति प्रसाद जी के बाद समाज की सबसे बड़ी गहरी क्षति मानी जाती है। सर सेठ साहब की पीढ़ी दर पीढ़ी समाज सेवा का इतिहास स्वर्ण पृष्ठों में अंकित रहेगा। इसके पश्चात् 30/04/87 को रायबहादुर राजकुमार सिंह जी कासलीवाल का इन्दौर में निधन हो गया। इससे मध्य भारत की ही नहीं किन्तु समस्त जैन समाज की अपूरणीय क्षति हुई। सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दौर के कार्यों को उन्होंने आगे बढ़ाया और सामाजिक कार्यों में सबको सहयोग दिया। नवें दशक में ही दिनांक 17 नवम्बर 1987 को पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री का निधन हो गया। शास्त्री जी जैन सिद्धान्त के प्रकाण्ड विद्वान थे। स्पष्ट वक्ता थे तथा महान् साहित्य सेवी थे। उनके द्वारा लिखित जैन धर्म पुस्तक कालजयी कृति मानी जाती है। इस दशक में डॉ. कन्छेदीलाल जी की हत्या भी समाज की उल्लेखनीय घटना मानी जाती है।