Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
२५ पृ० १७५ । हि. फि० इ० वे०, जि० १, पृ. ४९-५० | कै. हि०, जि० १, पृ० १०७-५०८ । वै० ए० पृ० ३८१)
___ अन्य वेद और ब्राह्मण शेष तीनों वेद और ब्राह्मण ग्रन्थ ऋग्वेदके बादमें रचे गये हैं, क्योंकि इनमें जिस भौगोलिक और सांस्कृतिक स्थितिके दर्शन होते हैं वह ऋग्वेदके पीछेकी है। इस कालमें वैदिक आर्य दक्षिण-पूर्वकी ओर बढ़ गये थे और गंगाके प्रदेशमें बस गये थे। किन्तु ब्राह्मण ग्रन्थोंसे यजु साम और अथर्व विशेष प्राचीन हैं। यह संभव है कि इन संहिताओंका सबसे उत्तरकालीन भाग
और ब्राह्मणोंका सबसे प्राचीन भाग एक ही समयमें रचा गया हो, क्योंकि ऋग्वेदकी तुलनामें, अथर्व और यजुर्वेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थों परसे जिस भौगोलिक तथा सांस्कृतिक स्थितिका दर्शन होता है उस परसे उक्त मतका समर्थन होता है। अथर्ववेद के समयमें वैदिक आर्य ऋग्वेदीय सिन्धुदेशसे पूरवमें गंमाकी
ओर बढ़ गये थे। और यजुर्वेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थोंसे जिस प्रदेशकी सूचना मिलती है वह है कुरुवों और पाञ्चालोंका देश । सरस्वती और दृषद्वती नदीके बीचका क्षेत्र कुरुक्षेत्र था और इससे लगा हुआ, उत्तर पश्चिमसे लेकर दक्षिण पूर्व तक फैला हुआ गंगा और जमुनाके बीचका प्रदेश पाञ्चाल था। इसीको ब्रह्मावर्त अर्थात् ब्राह्मणोंका देश कहते थे । यह प्रदेश केवल यजुर्वेद
और ब्राह्मण ग्रन्थोंकी जन्म भूमि नहीं था, किन्तु समस्त ब्राह्मण सभ्यताका घर था (विन्ट०, हि० इं० लि० भा० १ पृ० १९६)। ___एतरेय ब्राह्मणमें लिखा है कि कौरक्वंशी राजा भरत दौष्यन्तीने एक सौ तेतीस अश्वमेध यज्ञ किये थे। उनमेंसे ७८
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