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अध्याय दूसरा ।
श्री सिंहपुराज्ञातीय प्रेम जीवा भाई सुत भट्टारक श्री महाचंद्र शिष्य त्र० जयसागर प्रणमति "
इस लेखमें सिंहपुरा जातिका वर्णन आया है। इसकी दन्तकथा सूरत में यह प्रसिद्ध है कि इस सिंहपुरा जातिका एक दीवान देहलीकी सल्तनत में था । वहां बादशाहसे कुछ अनबन होनेके कारण वह कुटुम्बसहित खंभातके नबाबके यहां आकर रहा। फिर सुरत, महुआ, व्यारा तथा बलसारमें रहा । सूरत जिलेमें अब भी इस जातिके १५ घर हैं । मुख्य सेठ प्रेमचंद हरगोविन्दभाई देवचंद मोतीरूपावाला सूरत है । परन्तु वे सब घर नरसिंहपुरा जाति से सम्बन्ध करते हैं। क्योंकि सिंहपुरा जातिके और घर इधर नहीं रहे। इस लिये संवत् १९०४ में सिंहपुरा और नरसिंहपुरा दोनों जातियां मिल गई ।
यहां पर यह कह देना उचित होगा कि समयसमयपर जब जातियां छोटी रह गई तब वे एक दूसरे में मिलती भी गई हैं ऐसा प्रमाण मिलता है । ऐसी दशामें यदि दिगम्बर जैन धर्म पालनेवाली सर्व शुद्ध भिन्न २ जातियां परस्पर खानपान और बेटी व्यवहार करें तो छोटी जातियों के घरोंका नाश न हो। और क्षेत्र विशाल होने से योग्य सम्बन्ध प्रत्येकको प्राप्त हो जावे |
इस समय यहां दिगम्बर जैनियोंमें मुख्य सेठ कालीदास वखतचंद हैं जो दशाहुंबड़ हैं। ये ही पांच गोटोंके सेठ कहलाते हैं । वीसाहुमड़ मंत्रेश्वर गोत्री परोपकार - कार्य्यमें लीन सेठ मूलचंद किस नदासजी कापड़िया हैं जो 'दिगम्बर जैन ' पत्रके सम्पादक 'जैन मित्र' के प्रकाशक व 'जैनविजय' प्रेसके स्वामी हैं - नवापुरामें ? जैन पाठशाला व १ फुलकौर जैन कन्याशाला है । धर्मशाला चंदावाड़ी
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