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गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [६१ ३ मिशनकी, ३ पारसियोंकी, १ जैनोंकी है । ४ फ्री रात्रिशालाएं है। एक संस्कृत शाला, १ पारख हुन्नरशाला तथा ५-६ वोहरोंके मदरसे हैं । अंग्रेजी हाईस्कूल ४ हैं, मिडलस्कूल ३ हैं, पार्सी लड़कियोंकी एक इंग्रेजी स्कूल व मिशन जनानास्कूल व १ फ्री अंग्रेजी रात्रिशाला है।
यहां फ्री लायब्रेरी ११ व १२ हैं जिसमें जैनियोंकी मगनभाई प्रतापचंद जैन लायब्रेरी है । एंद्रुस लायब्रेरी सबसे बड़ी है।
वर्तमानमें सूरत शहर साधारण व्यापारका स्थान है।
पाठकोंको मालूम होना चाहिये कि यही वह नगर है जहां इस पुस्तकके चरित्रनायक सेठ माणिकचन्द्रजीने जन्म धारण किया था । जिस मुहल्लेमें उक्त सेठका जन्म हुआ था उसको अब
खपाटिया चकला कहते हैं। जिस साधारण मकानमें उस शरीरने माताके उदरसे अवतार लिया था वह मकान चंदावाड़ी धर्मशालाके. पास जैन मंदिरके बगलमें एक मंजलका छोटासा घर है जिसका अब भी दर्शन होता है।
पाठकोंके ज्ञानके लिये हम उसका चित्र यहांपर दिये देते हैं जिससे मालूम होगा कि जिस आत्माने अपने जीवनमें महापरोपकार व अपनी कीर्ति विस्तारी वह पुरुष एक बहुत ही साधारण स्थितिवाले घरमें जन्मे थे। जो अपनी निम्न दशासे ऊपरको चढ़ता है वही पुरुषार्थ और पुण्यात्मा मनुष्य है। जिसने जन्म लेकर अपने वंशकी उन्नति की उसीका जीना सफल है। जो योंही पैदा होकर जीता है वह मरेके समान है । कहा भी है. परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते ।
स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् ।।
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