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उच्चकुल में जन्म |
गाथा - तस्सय सीसो गुणवं, गुणभद्दो दिवणाण परिपुष्णो । पक्खोववास मंडिय महोतंवो भावलिंगो य ॥ ३१ ॥
भावार्थ- उनके शिष्य गुणवान श्रीगुणभद्रजी हुए जो दिव्य ज्ञानसे परिपूर्ण, पक्षोपवासके कर्ता, महातपी और भावलिंगी थे ॥३१॥
गाथा - तेण पुणोवि य मुच्चं णेऊण मुणिस्स विणयसेणस्स ।
सिद्धंतं घोसित्ता सयं गयं सग्गलोयस्स ॥ ३२ ॥
भावार्थ - इन्होंने श्री विनकसेन मुनिको सिद्धांत शास्त्रोंका उपदेशदिया । आप स्वर्गलोक गए ।
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गाथा - आसी कुमारसेणो णदियड़े विषयसेण दिरकयओ । सणास भंजणेण ये अगहिय पुण दिरकओ जाओ ॥३३॥ भावार्थ - विनयसेनका शिष्य कुमारसेन नदीयड़ ग्राममें हुआ उसने सन्यास या समाधिमरणको भंग किया फिरसे दीक्षा दी सो ग्रहण न की ॥ ३३ ॥
गाथा - परिवज्जऊण पिच्छं चमरं णोऊण मोहक लिदेण । उम्मेगं संकलियं वागड़ बिसएसु सव्र्व्वसु ॥३४॥
भावार्थ - उसने मोरकी पछी छोड़कर चमरीकी पीछी ग्रहण की तथा मोहके वशमें होकर सर्व ही बागड़ देशमें प्राचीन मार्गसे रहित उन्मार्गकी प्रवृत्ति की ।
गाथा - इच्छीणं पुण दिक्खा खुल्लय लोयस् वीर चीरयत्तं । कक्कसकेसग्गहणं छठ्ठे च गुणइदं णाम ॥ ३५ ॥
भावार्थ - स्त्रीको पुनः दीक्षा, क्षुल्लकों को वीरचर्य्या, चमके कर्कस केशोंका ग्रहण बताया व छठे गुणस्थानका विपरीत स्वरूप कहा ॥ ३५ ॥
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