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अपहारी
अपाप अपहारी-संज्ञा, पु० (सं० ) अपहारक, अपात्र-वि० (सं० ) अयोग्य, कुपात्र. छीनने वाला, चोर, लुटेरा।
! मूर्ख, श्राद्धादि में निमंत्रण के अयोग्य " भाजि पताल गयो अपहारी'-सूर०। (ब्राह्मण), पात्र रहित । अपहास-संज्ञा, पु० (सं० ) उपहास, संज्ञा, भा० स्त्री० अपात्रता। अकारण हँसी, मज़ाक, दिल्लगी। अपात्रीकरण संज्ञा, पु. (सं०) नवविधि अपहृत-वि० (सं०) छीना हुआ, हरा पापों में से एक पाप विशेष, या निर्णय हुआ, चुराया, लूटा हुआ।
जाति-भ्रष्ट करना । स्त्री० अपहृता।
। अपाथ-संज्ञा, पु० (सं० ) कुपंथ, कुमार्ग, अपन्हव-संज्ञा, पु० (सं० ) छिपाव, दुराव, बेरास्ता । मिस, बहाना, टाल-मटूल, कपट, कैतव, अपाथेय-संज्ञा, पु० (सं० ) पाथेय या गोपन, अपलाप, एक प्रकार का अलंकार मार्ग-भोजन से रहित । जिसमें उत्प्रेक्षा के साथ अपन्हुति भी रहता ! अपादान-संज्ञा, पु. ( सं० ) हटाना, है, काव्य-अ० पी० ।
। अलगाव, विभाग, स्थानान्तरीकरण, ग्रहण, अपन्हुति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुराव, छिपाव, एक प्रकार का कारक जिससे एक वस्तु से गोपन, बहाना, मिस, टाल मटूल, व्याज, दूसरी वस्तु की क्रिया का प्रारंभ सूचित हो अपलाप, एक प्रकार का अलंकार जिसमें जिससे किसी वस्तु की किसी दूसरी वस्तु से उपमेय का निषेध कर के उपमान का : पृथकता प्रगट की जाये इसका चिह्न "से" स्थापन किया जाये ( काव्य० )--अ० है-जैसे वृक्ष से पत्ते गिरते हैं, पंचम पी०।
कारक। अपांग-संज्ञा, पु. ( सं० ) आँख का कोना, अपान-संज्ञा, पु. ( सं० ) दस या पाँच आँख की कोर, कटाक्ष,।
प्राणों में से एक, गुदास्थ वायु जो मल-मूत्र वि० अंग-हीन, अंग-भंग, लूला, लँगड़ा, को बाहर निकालता है, तालु से पीठ तथा असमर्थ ।
गुदा से उपस्थ तक व्याप्त वायु, गुदा से अपांगदर्शन----संज्ञा, पु० ( स० ), टेढ़ा देखना. : निकलने वाली वायु, गुदा, गुह्य स्थान । कटाक्ष-पात, वक्र दृष्टि से देखना, वक्रा- अपान वायु-संज्ञा, पु. (सं०) मलवलोकन ।
द्वारस्थ वायु, पाद। अपांनिधि-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) समुद्र अपान - संज्ञा, पु० दे० (हिं. अपना) सागर, जलनिधि ।
आत्मभाव, आत्मतत्व, आत्मज्ञान, पापा, अपा--संज्ञा, स्त्री. (हि० दे०) गर्भ, (दे०) प्रात्मगौरव, भ्रम, सुधि, होश
श्रात्मभाव, श्रापा, ( दे० ) घमंड। हवास, अहम्, अभिमान, घमंड, अपनत्व, अपाक-वि० (सं० ) अपचार, अजीर्णता, अपनापन । वि० पान करने योग्य । संज्ञा, पु० (सं.) उदारमय, अपक्क, श्राम, सर्व० (दे० ) अपना। असिद्ध, अप्रौढ ।
“देखि भानु कुल भूषनहि. बिसरा सखिन अपाकरण-संज्ञा, पु. ( सं० ) पृथक अपान" रामा० । करना, अलगाना, हटाना, दूर करना, चुकता अपाना-----सर्व० । दे० ) अपना । करना।
अपाप-वि० (सं० ) निष्पाप, निर्दोष, अपाटव-संज्ञा, पु० (सं०) अपटुता, धर्मी। अनिपुणता, अचतुरता, बोदापन, मूर्खता। वि० अपापी ।
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