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ता है अतः लोक है। सर्वज्ञ के द्वारा अनन्त व अप्रति:त केबलदर्शन से जो देखा जाये सो लोक है। इस प्रकार धर्म ग्रादि द्रव्यों का भी लोकपना सिद्ध है।
पराक्त) तीनों में से अधो
२. लोक का प्राकार तित 11१७-१३८ देटिठमलोयायारो बेत्तासणसणिही सहावेण । मज्झिमलोयायारो उब्भियमर अद्धसारिच्छो उवरिम लोयारी उब्भिय मर वैणिहोइ सरिसत्तो। संठाणो एदाणं लोयाण एहि साहेमि ।१३८। इन (उपरोक्त) तीनों में से अधोलोक का आकार स्वभाव से वेत्रासन के सदश है, और मध्य लोक का प्राकार खड़े किये हये आधे मृदंग के ऊर्ध्वभाग के समान है ।१३। ऊध्वं लोक का आकार ले किये हुये मृदंग के सदृश है ।१३८। (ध ४११.३.२। गा०६।११) (वि. सा. ६) : (ज.प. 18): (द्र. सं 1 टी.री.।३।११२१११) । घ. ४।१.३.२।गा. ७११ तलस्वख संठाणो ।७। - यह लोक ताल वृक्ष के याकार वाला है।
जग प्र । २४ प्रो० लक्ष्मीचन्द-मिस्र देश के गिरजे में बने हये महास्तुप से यह लोका काश का प्राकार किंचित समानता रखता प्रतीत होता है।
का प्राकार खड़े किये
का आकार सड़े किये हुये प्रदेश
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३. लोक का विस्तार ति १ १।१४६-१६३ मेढिपमाणायामं भागेसु दक्खिणुत्तरेषु पूढे । पुवावरेसु वासं भूमिमुहे सत्त येवकपचेक्का ।१४६। चोइस रज्जुपमाणो उच्छेहो होदि सयललोगस्स ! अद्धमुरज्जस्सुदबो समग्गमुखोदयसरिच्छो ।१५० हेट्ठिम मज्झिमउबरिमलो उच्छेहो कमेण रज्जूवो । सतय जोयणलक्खं जोयणलक्खूणसगरज्जू ।१५१॥ इह रयणसकरात्रालुपंकषमतममहातमादिपहा। मुरबद्धिम्मि महीनो सत्त च्चिय रज्जु अन्तरिया ।१५२। धम्मावंसामेघाजणरिट्ठाण उब्भमघवीयो माघविया इय ताणं पूतवीण गोत्तणामाणि ।१५३। 1 मज्झिम जगस्सहेदिठमभागादो णिग्गदो पढमरज्ज । सक्करपहपुतवीए हेठिमभागम्मि णिठ्ठादि ।१५४! तत्तो दोईद रज्जू वालुवपहहेट्ठि समप्पेदि । तह य तइज्जा रज्जू पंकपहहेवस्य भागम्मि ।१५५। धूमपहाए हेदिमभागम्मि समपदे तुरिय रज्जू । तह पंचमिया रज्जू तमप्पहाहेट्ठिमपएसे 1१५६१ महतमहेमियंते छट्ठी हि समप्पदे रज्ज तत्तो सत्तमरज्ज़ लायस्स तलम्मि गिट्ठादि ।१५७। मभिमजगस्य उवरिमभागाद दिवढरज्जपरिमाणं । इगिजोयण लक्षणं सोहम्मविमाण धयदंडे 1१५८। वच्चदि दिवइवरज्जू माहिंदसणकुमार उबारम्मि । गिट्ठादि प्रद्धरज्जू बभुत्तर उडढभागम्मि ११५६॥ अवसादि प्रद्धरज काविठ्ठस्सोबरिटउभागम्मि। स च्चि सहसुक्कोवरि सहसारोवरि अ स रुचय ।१६०। तत्तोय प्रवरज्ज आणदकप्पस्स उरिम-पएसे । स य पारणस्य कप्पस्स उरिम भागम्मि गेबिज्ज ।१६१। तत्तो उवरिमभागे गवाणतरो होति एक्करज्जूयो । एवं उरिमलोए रज्जुविभागो समुद्दिद ।१६। णियणिय चरिमिदयधयदंडग्ग कम्प मिनवसाणं कप्पादीदमहीए विच्छेदो लोयविच्छेदो ।१६।
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दक्षिण और उत्तर भाग में लोक का पायाम जग श्रेणी प्रमाण अर्थात् सात राजू है। पूर्व और पश्चिम भाग में भूमि प्रौर मुख का व्यास क्रम से सात एक, पांच और एक राज है। तात्पर्य यह है कि लोक की मोटाई सर्वत्र सात राजू है और विस्तार ऋम से लोक के नीचे सात राज, मध्यलोक में एक राज् ब्रह्म स्वर्ग पर पाँच राज और लोक के अन्त में एक राजू है। १२) सम्पूर्ण लोक की ऊंचाई १४ राजू प्रमाण है। अर्द्ध मृदंग की ऊंचाई सम्पूर्ण मृदंग की ऊँचाई के सदृश है। अर्थात् अर्द्धमृदंग सदश अधोलोक जैमे सात राज ऊंचा है। उसी प्रकार ही पूर्ण मृदंग सदृश ऊर्ध्वलोक भी सात ही राजू ऊंचा है।१५०। क्रम से प्रघोलोक की ऊंचाई सात राज, मध्यलोक की ऊंचाई १००,००० योजन और ऊर्ध्वलोक की ऊंचाई एक लाख योजन कम सात राज है। 1१५१ (ध, ४११, ३, २। गा. ८।११), (त्रि. सा. १३३)(ज. प.।४।११, १६.१७) । ३. तहाँ भी तीनों लोकों में से अर्द्धमृदंगाकार अधोलोक में रत्नप्रभा, शक्राप्रमा, बालुकाप्रमा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महातमप्रभा ये सात पृथ्वीयां एक राज के अन्तराल से हैं 1१५२१ घर्मा, वंशा, मेघा, अजना, अरिष्टा मधवी और माधवी ये इन उपर्युक्त पृथ्वियों के अपरनाम है।।१५। मध्यलो के अधोभाग से प्रारम्भ होकर पहला राजू शर्कराप्रभा पृथ्वी के अधोभाग में समाप्त होता है । १५४॥ इसके प्रागे दूसरा राजू प्रारम्भ होकर बालुकाप्रभा के अधोभाग में समाप्त होता है। तथा तीसरा राजू पंकप्रभा के अधोभाग में ११५॥ चौथा धूमप्रभा के अधोभाग में, पांचवां तमः प्रभा के अधोभाग में ।१५६। और छठा राजू महातमःप्रभा के अन्त में