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आत्मतत्व-विचार सकते | जरा आराम और शान्ति पाने के लिए यहाँ आये, तो यह गोर मचाकर हमारा सिर फिरा रहा है ।"
चित्र ने कहा- "हे स्वामी । ये केगीकुमार श्रमण पार्वपत्य हैं, जातिवन्त है, चार ज्ञान के धारक है, इन्हे परम अवधिज्ञान प्राप्त है और ये अन्नभोजी है।"
राजा बोला- "चित्र! तू क्या कहता है ? क्या इस पुरुष को परम अवविज्ञान हुआ है ? क्या यह अन्नजीवी है ?” चित्र ने कहा- "हॉ, स्वामी ! ऐसा ही है। राजा ने पूछा-"तो क्या इस पुरुष के पास चलना चाहिये ?"
नब राजा और चित्र केगीकुमार के सामने जाकर खडे हो गये। राजा ने पूछा-'हे भन्ते । क्या आप परम अवविज्ञानधारी हैं ? क्या आप अन्नजीवी है ?"
आचार्य ने कहा-"रिश्वतखोर रिश्वत से छूटने के लिए किसी से सच्चा रास्ता तो पूछते नहीं, बल्कि टेढे रास्ते चलते रहते है। उसी प्रकार हे राजन् । विनयमार्ग से भटका हुआ होने के कारण तुझे प्रश्न पूछना भी नहीं आता। मुझे देखकर तुझे ऐसा विचार तो आया कि, यह लूंठ गला फाड़-फाडकर जड लोगो को क्या समझा रहा है ? और, मेरे उद्यान में गोर मचाकर मुझे शान्ति नहीं लेने देता!”
राजा ने कहा-"यह बात सच है, लेकिन आपने यह कैसे जान लिया ? आपको ऐसा कौन-सा ज्ञान है कि, जिससे आपने मेरे मन का विचार जान लिया ?"
आचार्य ने कहा-“हे राजन् । हम श्रमण-निर्ग्रन्थो के शास्त्र में पॉच प्रकार का जान बताया है-१ मति, २ श्रुति, ३ अवधि, ४ मनःपर्यव
और ५ केवल । उनमे प्रथम चार जान मुझे हो गये है, इसी से मै तेरे -मन का सकल्प जान सकता हूँ।"
राजा ने पूछा--"हे भगवन्त ! क्या मै यहाँ बैठ सकता हूँ?"