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आत्मतत्व-विचार
चित्र आचार्यश्री के इगिति से यह समझ गया था कि वे एक बार श्वेतम्बिका जरूर पधारेगे। इसलिए उसने श्वेतम्बिका पहुँचकर नगर के उद्यानपालको को बुलाया और कहा कि "हे देवानुप्रियो ! पार्श्वपत्य केशीकुमार श्रमण विहार करते हुए यहाँ आनेवाले है। वे जब यहाँ आये, तब आप उनको नमन-वदन करना, रहने की अनुजा देना और पीठ-फलक वगैरह ले जाने का निमत्रण देना। तब उनके आगमन की मुझे सूचना देना।"
कुछ समय बाद उद्यानपालक ने आकर चित्र को सूचना दी,-"हे बुद्धिनिधान ! धीर, वीर, अनुपम, उदार, निग्रन्थ और निरारंभी तथा चार जान के धनी श्री केगी गणधर अपने शिष्य परिवार सहित आज प्रातःकाल उद्यान में पधार गये हैं।"
यह सूचना मुनते ही मन्त्रीश्वर का हृदय आनन्द से भर गया । उसने उद्यानपालक को जीवन भर के लिए पर्यात प्रीतिदान देकर विदा किया । उसके बाद वह नहा-धोकर, शुद्ध वस्त्र पहन कर तथा शृगार करके आचार्यश्री के दर्शन के लिए गया और उनके दर्शन के बाद कहने लगा कि, 'हे भगवन् । हमारा राजा प्रदेगी अवार्मिक है और देग का कारवार अच्छी तरह नहीं चलाता । वह किसी श्रमण, ब्राह्मण या भिक्षु का भी आदर नहीं करता और हर किसी को परीगान करता है । इमलिए आप उसे धर्मोपदेश करे, तो बहुत अच्छा हो । साथ ही,श्रमगो, ब्राह्मणो, भिक्षुओ, मनुष्यो, पशुओ ओर पक्षियों की भी बहुत भलाई हो ।'
आचार्यश्री ने कहा- "हे चित्र । तेरे गजा प्रदेगी को हम धर्म कैसे मुनाये ? वह हमारे पाम आये तब न ?'
चित्र ने कहा-"मैं उसे किसी प्रकार आपके पास ले आऊँगा। आप उमे बिना मकोच के धमापदेश कीजियेगा। किचित् मात्र सकोच नहीं गग्वियेगा।