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दूसरा प्रकरण ।
बोध-स्वरूप अर्थात् ज्ञान-स्वरूप होकर, इतने काल तक देह
और आत्मा के अविवेक करके दुःखी होता रहा। आज से हे गुरो ! आपकी कृपा करके मैं आत्मानन्द अनुभव को प्राप्त हुआ हूँ ॥ १ ॥
मूलम् । यथा प्रकाशयाम्ये को देहमेनं तथा जगत् । अतो मम जगत्सर्वमथवा न च किंचन ॥२॥
पदच्छेदः । यथा, प्रकाशयामि, एकः, देहम्, एनम्, तथा, जगत्, अतः, मम, जगत्, सर्वम्, अथवा, न च, किञ्चन ।। अन्वयः । __ शब्दार्थ । अन्वयः ।
शब्दार्थ । यथा-जैसे
अन्तः इसलिये एनम् इस
मम मेरा देहम्=देह को
सर्वम् सम्पूर्ण एक: अकेला ही
जगत्-संसार है प्रकाशयामि=मैं प्रकाश करता हूँ अथवा-या तथा वैसे ही
+ मम मेरा जगत्-संसार को भी किञ्चन-कुछ भी प्रकाशयामिप्रकाश करता हूँ
न नहीं है ।
भावार्थ । पूर्व वाक्य करके जनकजी ने मोह की महिमा को कहा-अब इस वाक्य करके गुरु की कृपा से जो उनको देह और आत्मा का विवेक ज्ञान हुआ है, उसको सहित युक्ति के कथन करते हैं