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अठारहवां प्रकरण ।
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च-और किम्=क्या
किमक्या ब्रूते-कहता है
करोति-करता है
भावार्थ । त्वं पद का अर्थ जो जीवात्मा है, और तत्पद का अर्थ जो ब्रह्म है, दोनों के अभेद को निश्चय करके भाव और अभाव अर्थात् भाव जो घटादि पदार्थ हैं, और उनका जो अभाव है, ये दोनों अधिष्ठानचेतन में कल्पित हैं । इस प्रकार समस्त जगत को तुच्छ जानकर जिस विद्वान् की अविद्या नष्ट हो गई है, वह जिसके जानने की और कथन करने की इच्छा करता है, किंतु किसी की भी नहीं करता है, वह न किसी कार्य को करता है । क्योंकि अब उसमें कर्तृत्वाभिमान नहीं
मूलम् । अयं सोऽहमयं नाहमिति क्षीणा विकल्पनाः । सर्वमात्मेति निश्चित्य तूष्णीभूतस्य योगिनः ॥ ९॥
पदच्छेदः । अयम्, सः, अहम्, अयम्, न, अहम्, इति, क्षीणाः, विकल्पनाः, सर्वम्, आत्मा, इति, निश्चित्य, तूष्णीभतस्य, योगिनः ।। अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः ।
शब्दार्थ। सर्वम्-सब
निश्चित्य-निश्चय करके आत्मा आत्मा है
तूष्णीमतस्य-चुपचाप हुए इति-ऐसा
यागिनः योगी की