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अठारहवां प्रकरण । जितने शास्त्र के पढ़ने वाले हैं, और जितने शास्त्र के पढ़ाने वाले हैं, और जो केवल शास्त्र का विचार ही करते हैं, वे सब व्यसनी और मूर्ख हैं । जो उनमें वैराग्यादि साधन सम्पत्ति करके युक्त हैं, वे ही पण्डित हैं। दूसरे शास्त्र-दृष्टि से पण्डित नहीं हैं । पूर्वोक्त युक्तियों से यह सिद्ध हुआ कि जो अध्यासी पुरुष हैं, वहीं बद्धज्ञानी हैं। केवल अकर्ता, अभोक्ता कहने से वह अकर्ता, अभोक्ता कदापि नहीं हो सकता है ॥ ५१ ॥
मूलम् । उच्छृङ्खलाप्याकृतिका स्थिति(रस्य राजते । न तु संस्पृहचित्तस्य शान्तिर्मूढस्य कृत्रिमा ॥ ५२ ॥
पदच्छेदः। उच्छृङ्खला, अपि, आकृतिका, स्थितिः, धीरस्य, राजते, न, तु, संस्पृहचित्तस्य, शान्तिः, मूढस्य, कृत्रिमा । शब्दार्थ । । अन्वयः।
शब्दार्थ। धीरस्य-ज्ञानी की
स्थिति:-स्थिति उच्छृङ्खला-शान्ति-रहित
अपि-भी आकृतिका स्वाभाविक
राजते शोभती है
अन्वयः।