Book Title: Astavakra Gita
Author(s): Raibahaddur Babu Jalimsinh
Publisher: Tejkumar Press

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Page 401
________________ ३९४ अष्टावक्र-गीता भा० टी० स० हूँ, मेरे में व्यवहार कहाँ है ? अर्थात् व्यावहारिक पदार्थों का ज्ञान कहाँ है ? और पारमार्थिक ज्ञान कहाँ है ? ये भी दोनों अन्तःकरण के धर्म हैं, और सुख तथा दुःख भी मेरे में नहीं हैं, क्योंकि ये भी दोनों अन्तःकरण के धर्म हैं ॥ १० ॥ मूलम्। क्व माया क्व च संसारः क्व प्रीतिविरतिः क्व वा । क्व जीवः क्व च तद्ब्रह्म सर्वदा विमलस्य मे ॥ ११ ॥ पदच्छेदः । क्व, माया, क्व, च, संसारः, क्व, प्रीतिः, क्व, वा, क्व, जीवः, क्व, च, तत्, ब्रह्म, सर्वदा, विमलस्य, मे ॥ अन्वयः। शब्दार्थ । अन्वयः । शब्दार्थ । सर्वदा सर्वदा प्रीतिः प्रीति है ? विमलस्य-निर्मल वा और मे मुझको क्व-कहाँ क्व-कहाँ विरतिः-विरति है ? माया-माया है ? क्व कहाँ च और जीवः जीव है ? क्व-कहाँ च और संसार: संसार है ? क्व-कहाँ क्व-कहाँ तद्ब्रह्म-वह ब्रह्म है । भावार्थ। हे गुरो ! सर्वदा विमल उपाधि से शून्य जो मैं हूँ, उस मेरे में माया कहाँ है ? और माया के अभाव होने से माया

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