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अष्टावक्र-गीता भा० टी० स०
भावार्थ ।
कूटस्थ-विभाग से रहित और क्रिया से रहित जो मैं हूँ, उस मेरे में प्रवृत्ति कहाँ है ? और निवृत्ति कहाँ है ? मुक्ति कहाँ है ? और बन्ध कहाँ है ? अर्थात् ये सब निर्विकार आत्मा में कभी भी नहीं बन सकते हैं ।। १२ ।।
मूलम् । क्वोपदेशः क्व वा शास्त्रं क्व शिष्यः क्व च वा गुरुः । क्व चास्ति पुरुषार्थो वा निरुपाधः शिवस्य मे ॥१३॥
पदच्छेदः।
क्व, उपदेशः, क्व, वा, शास्त्रम्, क्व, शिष्य, क्व, च, वा, गुरुः, क्व, च, अस्ति, पुरुषार्थः, वा, निरुपाधेः, शिवस्य मे ॥ अन्वयः। शब्दार्थ । । अन्वयः।
शब्दार्थ। निरुपाधेः उपाधि-रहित
शिष्यः शिष्य है ? शिवस्य-कल्याण-रूप
च-और मे-मुझको
वा अथवा क्व-कहाँ
क्व-कहाँ उपदेशः उपदेश है ?
गुरुः गुरु है ? वा-अथवा
च-और क्व-कहाँ
क्व कहाँ शास्त्रम्-शास्त्र है ?
पुरुषार्थः मोक्ष क्व-कहाँ ?
अस्ति है ?