Book Title: Astavakra Gita
Author(s): Raibahaddur Babu Jalimsinh
Publisher: Tejkumar Press

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Page 405
________________ 398 अष्टावक्र गीता भा० टी० स० भावार्थ / मुझमें अस्ति अर्थात् है, और नास्ति अर्थात् नहीं है, यह भी स्फुरण नहीं होता है / क्योंकि असत्य की अपेक्षा से 'अस्ति' व्यवहार होता है, और सत्य की अपेक्षा से 'नास्ति' व्यवहार होता है, सो मेरे में व्यवहार के अभाव से दोनों नहीं हैं / न एकपना है, न द्वैतपना है / बहुत कथन करने से क्या प्रयोजन है, चैतन्यस्वरूप में कुछ भी नहीं बनता है // 14 // इति श्रीबाबजालिमसिंहकृताष्टावक्रगीताभाषाटीकायां जीवन्मुक्तचतुर्दशकं नाम विंशतिकं प्रकरणं समाप्तम् / / 20 //

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