Book Title: Astavakra Gita
Author(s): Raibahaddur Babu Jalimsinh
Publisher: Tejkumar Press

View full book text
Previous | Next

Page 404
________________ बीसवाँ प्रकरण। ३९७ भावार्थ। शिव-रूप अर्थात् कल्याण रूप उपाधि से रहित जो मैं हँ, उस मेरे लिये उपदेश कहाँ है ? क्योंकि उपदेश जो होता है, अपने से भिन्न को होता है, सो अपने से भिन्न तो कोई भी नहीं है, इस वास्ते शास्त्र-गुरु-रूपी उपदेश कभी नहीं है, और शिष्यभाव तथा गुरुभाव भी नहीं है, क्योंकि ये सभी को ले करके ही होते हैं ॥ १३ ॥ मूलम् । क्व चास्ति क्व च वा नास्ति क्वास्ति चैकंक्वचद्वयम् । बहुनात्र किमुक्तेन किञ्चिन्नोत्तिष्ठते मम ॥ १४ ॥ पदच्छेदः । क्व, च, अस्ति, क्व, च, वा, न, अस्ति, क्व, अस्ति, च, एकम्, क्व, च, द्वयम्, बहुना, अत्र, किम्, उक्तेन, किञ्चित्, न, उत्तिष्ठते, मम, 1000 शब्दार्थ । | अन्वयः । शब्दार्थ। क्व-कहाँ क्व-कहाँ अस्ति-अस्ति है ? द्वयम्-दो है ? च और अत्र-इसमें क्व-कहाँ बहुना=बहुत नास्ति नास्ति है ? उक्तेन कहने से किम्-क्या प्रयोजन है ? च-और क्व-कहाँ मम मुझको एकम् एक किञ्चित् कोई वस्तु अस्ति है ? च और उत्तिष्ठतेप्रकाश करता है । अन्वयः। नम्नहीं

Loading...

Page Navigation
1 ... 402 403 404 405