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बीसवाँ प्रकरण।
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भावार्थ। शिव-रूप अर्थात् कल्याण रूप उपाधि से रहित जो मैं हँ, उस मेरे लिये उपदेश कहाँ है ? क्योंकि उपदेश जो होता है, अपने से भिन्न को होता है, सो अपने से भिन्न तो कोई भी नहीं है, इस वास्ते शास्त्र-गुरु-रूपी उपदेश कभी नहीं है, और शिष्यभाव तथा गुरुभाव भी नहीं है, क्योंकि ये सभी को ले करके ही होते हैं ॥ १३ ॥
मूलम् । क्व चास्ति क्व च वा नास्ति क्वास्ति चैकंक्वचद्वयम् । बहुनात्र किमुक्तेन किञ्चिन्नोत्तिष्ठते मम ॥ १४ ॥
पदच्छेदः । क्व, च, अस्ति, क्व, च, वा, न, अस्ति, क्व, अस्ति, च, एकम्, क्व, च, द्वयम्, बहुना, अत्र, किम्, उक्तेन, किञ्चित्, न, उत्तिष्ठते, मम, 1000 शब्दार्थ । | अन्वयः ।
शब्दार्थ। क्व-कहाँ
क्व-कहाँ अस्ति-अस्ति है ?
द्वयम्-दो है ? च और
अत्र-इसमें क्व-कहाँ
बहुना=बहुत नास्ति नास्ति है ?
उक्तेन कहने से
किम्-क्या प्रयोजन है ? च-और क्व-कहाँ
मम मुझको एकम् एक
किञ्चित् कोई वस्तु अस्ति है ? च और
उत्तिष्ठतेप्रकाश करता है ।
अन्वयः।
नम्नहीं