Book Title: Astavakra Gita
Author(s): Raibahaddur Babu Jalimsinh
Publisher: Tejkumar Press

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Page 398
________________ बीसवाँ प्रकरण । ३९१ मूलम् । क्वप्रमाता प्रमाणं वा क्व प्रमेयं क्व च प्रमा। क्व किञ्चित्क्व न किञ्चिद्वा सर्वदा विमलस्य मे ॥ ८ ॥ पदच्छेदः । क्व, प्रमाता, प्रमाणम्, वा, क्व, प्रमेयम्, क्व, च, प्रमा, क्व, किञ्चित्, क्व, न, किञ्चित्, वा, सर्वदा, विमलस्य, मे ।। अन्वयः। शब्दार्थ ।। अन्वयः । शब्दार्थ । सर्वदा सर्वदा प्रमेयम् प्रमेय है ? विमलस्य-निर्मल-रूप च-और मे मुझको क्व-कहाँ क्व-कहाँ प्रमाप्रमा है ? प्रमाता-प्रमाता है ? क्व-कहाँ वा-और किञ्चित् किंचित् है ? क्व-कहाँ वा और प्रमाणम्-प्रमाण है ? च-और क्व-कहाँ क्व-कहाँ | न किञ्चित् अकिंचन है । भावार्थ । सर्वदा जो उपाधि-रूपी मल से रहित है, अर्थात जिसमें उपाधि शरीरादिक वास्तव में नहीं हैं। उसमें प्रमातापना, प्रमाणपना और प्रमेयपना कहाँ हो सकता है। अर्थात् प्रमाता, प्रमाण और प्रमेय ये तीनों अज्ञान के कार्य हैं । जब स्वप्रकाश चेतन में अज्ञान की संभावना मात्र भी नहीं है तब उसके कार्यों की संभावना कैसे हो सकती है, किन्तु कदापि

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