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अष्टावक्र गीता भा० टी० स०
और लोकों के अभाव होने से मुमुक्षु भी नहीं हैं । मुमुक्षु के अभाव होने से ज्ञानवान् योगी भी नहीं है । ऐसा होने से न कोई बद्ध है ? और न कोई मुक्त है ? केवल अद्वैत आत्मा ही है ॥ ६ ॥
मूलम् ।
क्व सृष्टिः क्व च संहारः क्व साध्यं क्व च साधनम् । क्व साधकः क्व सिद्धिर्वा स्वस्वरूपेऽहमद्वये ॥ ७ ॥ पदच्छेदः ।
क्व, सृष्टिः, क्व, च, संहारः, क्व, साध्यम्, क्व, च, साधनम्, क्व, साधकः, क्व, सिद्धि:, वा, स्वस्वरूपे, अहम्, अद्वये ॥
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
अहम् = आत्मा-स्वरूप अद्वये अद्वैत
स्वस्वरूपे = अपने स्वरूप में
क्व= कहाँ सृष्टि: सृष्टि च=और
क्व = कहाँ
संहारः = संहार है ?
क्व कहाँ
अन्वयः ।
साध्यम् = साध्य है। च=और क्व = कहाँ
साधनम् = साधन है ?
क्व= कहाँ साधक: = साधक है ?
वा और क्व कहाँ
सिद्धि:-सिद्धि है ||
शब्दार्थ |
भावार्थ ।
सृष्टि कहाँ ? प्रलय कहाँ ? साध्य कहाँ ? साधन कहाँ ? साधक कहाँ ? और सिद्धि कहाँ । अर्थात् इनमें से कोई भी मुझ अद्वैत-स्वरूप आत्मा में नहीं है ॥ ७ ॥