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अठारहवाँ प्रकरण | भावार्थ ।
हे शिष्य ! देहाभिमानी मूढ़ पुरुष को देह के साथ सम्बन्धवाले जो धन, वेश्या आदिक हैं, उनमें यदि किसी निमित्त से वैराग्य भी उत्पन्न हो जावे, तो भी वह वैराग्य शून्य है, परन्तु जिसका देहादिकों के साथ अभिमान नष्ट हो गया है, उसको देहसम्बन्धी पुत्रादिकों में न राग है, और शत्रु- व्याघ्रादिकों में न विराग है, राग और विराग उसको होता है, जिसको अपने देह का अभिमान है ।। ६२ ।।
मूलम् । भावनाभावनासक्ता दृष्टिर्मूढस्य सर्वदा | भाव्यभावनया सा तु स्वस्थस्यादृष्टिरूपिणी ॥ ६३ ॥ पदच्छेदः ।
भावनाभावनासक्ता, दृष्टि, मूढस्य, सर्वदा, भावनया, सा, तु, स्वस्थस्य, अदृष्टिरूपिणी ॥
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
अन्वयः ।
मूढस्य = अज्ञानी की दृष्टि: = दृष्टि
सर्वदा सर्वदा
भावनाभावना
=
सक्ता
भावना में या अभावना में लगी
हुई है
तु परन्तु
स्वस्थस्य-ज्ञानी की
सा=दृष्टि
{
अपि-भी
भाव्यभावनया=
अदृष्टिरूपिणी=
३३९
भाव्य
2 वाली भवति होती है ||
शब्दार्थ |
युक्त हो करके
दृश्य के दर्शन से रहित रूप