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अन्वयः ।
अष्टावक्र गीता भा० टी० स०
शब्दार्थ |
च=और
अनन्तरूपेण = अनन्त रूप से
प्रकृतिम् = माया को
न पश्यतः- नहीं देखते हुए स्फुरतः = {
= कहाँ
बन्धः बन्धन है
प्रकाशमान अर्थात् ज्ञान को
बुद्धिपर्यन्त = संसारे
:{
मायामात्रम्=
भावार्थ ।
जो चिद्रूप आत्मा में कार्य के सहित माया को नहीं देखता है, उसकी दृष्टि में बन्ध कहाँ है ? मोक्ष कहाँ है ? और हर्ष - विषाद कहाँ है ? ।। ७२ ।।
अन्वयः ।
मूलम् । बुद्धिपर्यन्त संसारे मायामात्रं विवर्त्तते ।
निर्ममो निरहङ्कारो निष्कामः शोभते बुधः ॥ ७३ ॥ पदच्छेदः ।
{
क्व कहाँ मोक्षः=मोक्ष है
वा=और
बुद्धिपर्यन्तसंसारे, मायामात्रम्, विवर्त्तते निर्ममः, निरहङ्कारः, निष्कामः, शोभते, बुधः ।
अन्वयः ।
शब्दार्थ | अन्वयः ।
बुद्धिपर्यन्त
संसार में
क्व= कहाँ
हर्षः हर्ष है
च=और
माया - विशिष्ट चैतन्य
क्व= कहाँ
विषादता शोक है |
शब्दार्थ |
शब्दार्थ |
जगत् = जगत्-भाव को विवर्तते कल्पित करता है
बुधः ज्ञानी पुरुष