Book Title: Astavakra Gita
Author(s): Raibahaddur Babu Jalimsinh
Publisher: Tejkumar Press

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Page 372
________________ शब्दार्थ । अठारहवाँ प्रकरण । ३६५ मूलम् । भिक्षुर्वा भूपतिर्वापि यो निष्कामः स शोभते । भावेषु गलिता यस्य शोभनाऽऽशोभना मतिः ॥ ९१ ॥ पदच्छेदः । भिक्षुः, वा, भूपतिः, वा, अपि, यः, निष्कामः, सः,शोभते, भावेषु, गलिता, यस्य, शोभनाऽशोभना, मतिः ।। अन्वयः । शब्दार्थ । | अन्वयः । भावेषु सब भावों में यः-जो गलिता-गलित हुई है सःवह शोभनाऽऽशोभना श्रेष्ठ, अश्रेष्ठ शोभते शोभायमान होता है वा-चाहे मतिः बुद्धि भिक्षु-भिक्षु हो यस्य-जिसकी अपि और तस्मात् इसीलिये । वा-चाहे निष्कामः=कामना-रहित है । भूपतिः राजा हो । भावार्थ । जिस विद्वान् की उत्तम पदार्थों में इच्छा-बुद्धि नहीं है, और अनुत्तम पदार्थों में दोष-बुद्धि नहीं है, ऐसा जो निष्काम है, वह चाहे भिक्षुक हो, अथवा राजा हो, संसार में वही शोभा को प्राप्त होता है। राजाओं में निष्काम जनक और श्रीरामचन्द्रजी हुए हैं, जिनके यश को आज तक संसार में लोग गान करते हैं। और विरक्तों में जड़भरत, दत्तात्रेय और याज्ञवल्क्य आदि हुए हैं, जिनके शुद्ध चरित्र हस्तामलकवत् सबकी दृष्टि में दिखाई दे रहे हैं । ९१ ॥

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