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उन्नीसवाँ प्रकरण ।
३८३ होनेवाले पदार्थ कहाँ हैं ? लय कहाँ है ? और समाधि कहाँ ? अपनी महिमा में जो स्थित है, उसमें लयादिक भी तीनों कालों में नहीं है ॥ ७ ॥
मूलम् । अलं त्रिवर्गकथया योगस्य कथयाऽप्यलम् । अलं विज्ञानकथया विश्रान्तस्य ममात्मनि ॥ ८ ॥
पदच्छेदः । अलम्, त्रिवर्गकथया, योगस्य, कथया, अपि, अलम्, अलम्, विज्ञानकथया, विश्रान्तस्य, मम, आत्मनि ॥ अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ । आत्मनि आत्मा में
योगस्य योग की विश्रान्तस्य विश्रान्त हुए
कथया कथा से
अलम्=पूर्णता है मम मुझको
च=और
त्रिवर्गकथया
की कथा से | विज्ञानकच्या
-1 से भी
त्रिवर्गकथया- धर्म, अर्थ और।
। काम की कथा से | विज्ञानकथया- विज्ञान की कथा अलम्=पूर्णता है ?
। अलम्=पूर्णता है ॥
भावार्थ । धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनकी कथाओं से, योग की कथाओं से विज्ञान की कथाओं से भी कुछ प्रयोजन नहीं है । क्योंकि मैं आत्मा में विश्रान्ति को प्राप्त हुआ हूँ॥८॥ इति श्रीअष्टावक्रगीतायामेकोनविंशतिकं प्रकरणं समाप्तम् ।