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अठारहवाँ प्रकरण ।
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अन्वयः।
मूलम् । मन्दः श्रुत्वापि तद्वस्तु न जहाति विमूढताम् । निर्विकल्पो बहिर्यत्नादविषयलालसः ॥ ७६ ॥
पदच्छेदः । मन्दः, श्रुत्वा, अपि, तत्, वस्तु, न, जहाति, विमूढताम्, निर्विकल्पः बहिः, यत्नात्, अन्तविषयलालसः ।। __ शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ। मन्दः मूर्ख
परन्तु-परन्तु तत्-उस
बहिः वाह्य वस्तु-आत्मा को
यत्नात व्यापार से श्रुत्वा-सुन करके
निर्विकल्पः-संकल्प-रहित हुआ अपि भी
(भीतर याने मन
अन्तविषयक विमूढताम्-मूढ़ता को
13 में विपय का न जहाति=नहीं त्याग करता है
लालसावाला __ भवति होता है ।
भावार्थ । मूर्ख आत्मा का श्रवण करके भी अपनी मुर्खता का त्याग नहीं करता है। मलिन चित्तवाले को आत्मा के श्रवण करने से भी ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है । मूर्ख बाह्य व्यापार से रहित होता हुआ भी मन में विषयों को धारण किया करता है ।। ७६ ॥
मूलम् । ज्ञानाद्गलितकर्मा यो लोकदृष्ट्यापि कर्मकृत । नाप्नोत्यवसरं कर्तुं वक्तुमेव न किञ्चन ॥ ७७ ॥
लालसः