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अठारहवां प्रकरण ।
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स्वभावात् । स्वभाव से
अन्वयः। शब्दार्थ । । अन्वयः ।
शब्दार्थ। यस्य-जिस
नम्नहीं व्यवहारिण-व्यवहार करनेवाले
एब-निश्चय करके
सः वह ज्ञानिन्-ज्ञानी को
गतक्लेश-क्लेश-रहित ज्ञानी आत्मज्ञान के
महाह्नद इव-समुद्रवत्
अक्षोभ्य-क्षोभ-रहित लोकवत्-लोक की तरह सुशोभते शोभायमान होता है ।
भावार्थ । . ज्ञानवान् व्यवहार को करता हुआ भी अज्ञानी पुरुषों की तरह खेद को नहीं प्राप्त होता है । वह महाह्नद की तरह क्षोभ से रहित शोभा को प्राप्त होता है ।। ६० ॥
मूलम्। निवृत्तिरपि मूढस्य प्रवृत्तिरुपजायते । प्रवृत्तिरपि धीरस्य निवृत्तिफलदायिनी ॥ ६१ ॥
पदच्छेदः । निवृत्तिः, अपि, मूढस्य, प्रवृत्तिः, उपजायते, प्रवृत्तिः, अपि, धीरस्य, निवृत्तिफलदायिनी ॥ अन्वयः। __ शब्दार्थ । | अन्वयः ।
शब्दार्थ। मूढस्य-मूढ़ की
च-और निवृत्तिः निवृत्ति
धीरस्य ज्ञानी की अपि भी
प्रवृत्तिः प्रवृत्ति
अपि भी प्रवृत्ति प्रवृत्ति-रूप
निवृत्तिफल-_निवृत्त के फल उपजायते-होती है
दायिनी । को देनेवाली है।