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अठारहवाँ प्रकरण |
पदच्छेदः ।
अकुर्वन्, अपि, संक्षोभात्, व्यग्रः, सर्वत्र, मूढ़धी:, कुर्वन्, अपि तु कृत्यानि, कुशलः, हि, निराकुलः ॥
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
अन्वयः ।
मूढधीः = अज्ञानी
अकुर्वन्=
कर्मो को नहीं
करता हुआ
अपि भी
सर्वत्र सब जगह
संक्षोभात्= {सं करण
संकल्प - विकल्प
व्यग्रः = व्याकुल भवति होता है
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शब्दार्थ |
च=और
कुशल: ज्ञानी च=और
कृत्यानि कर्मो को कुर्वन्=करता हुआ
अपि भी
हि-निश्चय करके निराकुलः = निश्चय चित्तवाला भवति होता हैं |
भावार्थ ।
हे शिष्य ! अज्ञानी शून्य मंदिरों में और वनादिक, पर्वतादिक एकांत स्थानों में कर्मों को अर्थात् शरीर इन्द्रयादि के व्यापारों को न करता हुआ भी संकल्पों से व्यग्र चित्तवाला ही होता है, और विद्वान् सर्वत्र शरीर इन्द्रियादिकों के व्यापारों को लोक- दृष्टि करके करता हुआ भी व्यग्र चित्तवाला नहीं होता है । क्योंकि वह निःसंकल्प है ॥५८॥
मूलम् ।
सुखमास्ते सुखं शेते सुखमायाति याति च । सुखं वक्ति सुखं भुङ्क्तेव्यवहारेऽपि शान्तधीः ॥ ५९ ॥