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________________ अठारहवाँ प्रकरण | पदच्छेदः । अकुर्वन्, अपि, संक्षोभात्, व्यग्रः, सर्वत्र, मूढ़धी:, कुर्वन्, अपि तु कृत्यानि, कुशलः, हि, निराकुलः ॥ शब्दार्थ | अन्वयः । अन्वयः । मूढधीः = अज्ञानी अकुर्वन्= कर्मो को नहीं करता हुआ अपि भी सर्वत्र सब जगह संक्षोभात्= {सं करण संकल्प - विकल्प व्यग्रः = व्याकुल भवति होता है ३३५ शब्दार्थ | च=और कुशल: ज्ञानी च=और कृत्यानि कर्मो को कुर्वन्=करता हुआ अपि भी हि-निश्चय करके निराकुलः = निश्चय चित्तवाला भवति होता हैं | भावार्थ । हे शिष्य ! अज्ञानी शून्य मंदिरों में और वनादिक, पर्वतादिक एकांत स्थानों में कर्मों को अर्थात् शरीर इन्द्रयादि के व्यापारों को न करता हुआ भी संकल्पों से व्यग्र चित्तवाला ही होता है, और विद्वान् सर्वत्र शरीर इन्द्रियादिकों के व्यापारों को लोक- दृष्टि करके करता हुआ भी व्यग्र चित्तवाला नहीं होता है । क्योंकि वह निःसंकल्प है ॥५८॥ मूलम् । सुखमास्ते सुखं शेते सुखमायाति याति च । सुखं वक्ति सुखं भुङ्क्तेव्यवहारेऽपि शान्तधीः ॥ ५९ ॥
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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