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अन्वयः ।
अष्टावक्र गीता भा० टी० स०
शब्दार्थ |
स्वराज्ये= राज्य में
भैक्ष्यवृत्ती = भिक्षावृत्ति में
लाभालाभे= {
लाभ और अलाभ में
जने= मनुष्यों के समूह में
वाया
अन्वयः ।
भावार्थ ।
क्व, धर्मः, क्व, च, विवेकता, इदम्, कृतम्, न
,
अन्वयः ।
इदम् = यह कृतम् = किया गया है
वने वन में
निर्विकल्प -
स्वभावस्य
इदम् =यह
न कृतम् = नहीं किया गया है।
=
जीवन्मुक्त को स्वर्ग के राज्य मिलने पर भी न उसको हर्ष होता है, और भिक्षावृत्ति में न उसको विक्षेप होता है, और पदार्थ का लाभ और अलाभ दोनों उसको बराबर हैं, वन में रहे व घर में रहे, वह एकरस रहता है ।। ११ ।।
योगिनः = योगी को
विशेषः = कोई विशेषता
न अस्ति नहीं है ||
मूलम् ।
क्व धर्मः क्व च वा कामः क्व चार्थः क्व विवेकता । इदं कृतमिदं नेति द्वन्द्वैर्मुक्तस्य योगिनः ॥ १२ ॥
शब्दार्थ | अन्वयः ।
विकल्प - रहित
शब्दार्थ |
पदच्छेदः ।
वा, काम:, क्व, च, अर्थ:, क्व, इति, द्वन्द्वैः, मुक्तस्य, योगिनः ॥
शब्दार्थ |
इति = इस प्रकार
द्वै:
से
मुक्तस्य = छूटे हुए योगिनः योगी को