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अठारहवाँ प्रकरण ।
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मूलम् ।
न शान्तिं लभते मूढो यतः शमितुमिच्छति । धीरस्तत्त्वं विनिश्चित्यसर्वदा शान्तमानसः ॥ ३९॥
पदच्छेदः । न, शान्तिम्, लभते, मूढः, यतः, शमितुम्, इच्छति, धीरः, तत्त्वम्, विनिश्चित्य, सर्वदा, शान्तमानसः ।। अन्वयः । शब्दार्थ । | अन्वयः ।
शब्दार्थ । यतः जिस कारण
___ न लभते नहीं प्राप्त होता है शमितुम् शान्त होने को
धीरः ज्ञानी मूढः अज्ञानी इच्छति-इच्छा करता है
तत्त्वम्-तत्त्व को ततः इसी कारण
विनिश्चित्य-निश्चय करके सः वह
सर्वदा-सर्वदा शान्तिम् शान्ति को
शान्तमानसः शान्त मनवाला है ।
भावार्थ । अष्टावक्रजी कहते हैं कि हे जनक ! मूढ़ अज्ञानी जिस हेतु चित्त के निरोध से शान्ति की इच्छा करता है, इसी वास्ते वह शान्ति को नहीं प्राप्त होता है । धीर जो है सो आत्मतत्त्व को निश्चय करके शान्ति की इच्छा नहीं करता है, इसी लिये शान्ति को प्राप्त होता है ॥ ३९ ॥
मूलम् । क्वात्मनो दर्शनं तस्य यदृष्टमवलम्बते । धीरास्तंतंन पश्यन्ति पश्यन्त्यात्मानमव्ययम् ॥ ४० ॥