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अष्टावक्र-गीता भा० टी० स०
अन्वयः।
शब्दार्थ ।। अन्वयः ।
शब्दार्थ । मुमुक्षोः=मुमुक्षु पुरुष को
सर्वदा-सब काल में बुद्धिः=बुद्धि
निष्कामा-कामनारहित आलम्बम् अन्तरेण आलम्ब के विना
च-और न विद्यते नहीं रहती है निरालम्बा-आश्रय-रहित मुक्तस्य-मुक्त पुरुष की
एव-निश्चय करके बुद्धिः-बुद्धि
विद्यते-रहती है ॥
भावार्थ ।
जिसको आत्मा का साक्षात्कार नहीं हुआ है, उसकी बुद्धि सांसारिक विषय का आलम्बन करती है। और जो निष्काम जीवन्मुक्त है, उसकी बुद्धि आत्मा के आश्रय रहती है। आत्मा के अचल होने से वह बुद्धि भी सदैव स्थिर रहती है ।। ४४ ।।
मूलम्। विषयद्वीपिनो वीक्ष्य चकिताः शरणार्थिनः । विशन्ति झटिति क्रोडन्निरोधैकाग्रयसिद्धये ॥ ४५ ॥
पदच्छेदः । विषयद्वीपिनः, वीक्ष्य, चकिताः, शरणार्थिनः, विशन्ति, झटिति, क्रोडम्, निरोधैकाग्रयसिद्धये ॥ अन्वयः। शब्दार्थ | अन्वयः।
शब्दार्थ। विषयद्वीपिनः विषय-रूपी व्याघ्रको
अपने शरीर की वीक्ष्य-देख करके
शरणार्थिनः-२ रक्षा करनेवाले चकिता: डरे हुए
(मूढ पुरुष