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धर्म:-धर्म क्व= कहाँ है
वा=और
कामः काम
= कहाँ है च=और
अठारहवाँ प्रकरण
अन्वयः ।
अर्थ:-अर्थ
कहाँ है
च=और
जीवन्मुक्तस्य = जीवन्मुक्त योगिनः योगी को कृत्यम्=कर्तव्य कर्म
किम् अपि न एव =कुछ भी नहीं है
विवेकता विचार
= कहाँ है ||
भावार्थ |
अष्टावक्रजी कहते हैं कि स्थिर चित्तवाले योगी को धर्म, काम और अर्थ के साथ कुछ प्रयोजन नहीं रहता है, और इस काम को मैंने कर लिया है, या इसको मैं करूँगा, इस प्रकार के द्वन्द्वों से जो रहित है, वही जीवन्मुक्त योगी है ।। १२ ।।
मूलम् ।
कृत्यं किमपि न एव न कापि हृदि रञ्जना । यथा जीवनमेवेह जीवन्मुक्तस्य योगिनः ॥ १३ ॥ पदच्छेदः ।
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कृत्यम्, किम् अपि न, एव, न, का, अपि, हृदि, रञ्जना, यथा, जीवनम् एव, इह, जीवन्मुक्तस्य योगिनः ॥ शब्दार्थ |
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
२८७
च=और
नन्न
हृदि मन में
का अपि = कोई भी