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अठारहवाँ प्रकरण ।
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मूलम् । भावाभावविहीनो यस्तृप्तो निर्वासनो बुधः । नैव किञ्चित् कृतं तेन लोकदृष्टया विकुर्वता ॥१९॥
पदच्छेदः । भावाभावविहीनः, यः, तृप्तः, निर्वासनः, बुधः, न, एव, किञ्चित्, कृतम्, तेन, लोकदृष्ट्याः , विकुर्वता ॥ अन्वयः। शब्दार्थ । । अन्वयः ।
शब्दार्थ । यः-जो
निर्वासनः वासना-रहित है तृप्तः तृप्त हुआ
लोकदृष्टया लोक दृष्टि में बुधः-ज्ञानी
तेन-उस भावाभाव-_ भाव और अभाव
कुर्वता=किये हुए करके विहीनः । से रहित है किञ्चित् एव-कुछ भी च-और
न कृतम्-नहीं किया गया है ।
भावार्थ । जो विद्वान अपने आत्मानन्द करके ही तप्त है, वह स्तुति और निन्दा आदिकों से रहित है, क्योंकि वह लोक दृष्टि से कर्ता हुआ भी अकर्ता है । आत्मज्ञान करके उसके कर्तृत्वादि अध्यास सब नष्ट हो गए हैं।
मूलम् । प्रवृत्तौ वा निवृत्तौ वा नैव धीरस्य दुर्ग्रहः । यदा यत्कर्तुमायाति तत्कृत्वा तिष्ठतः सुखम् ॥२०॥