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अठारहवाँ प्रकरण ।
२८९ क्व-कहाँ
वा और तत्व ह
क्वकहाँ ध्यानम्-ध्यान है
मुक्ता-मुक्ति है ॥
भावार्थ । जीवन्मुक्त के सब संकल्प नष्ट हो जाते हैं, इसी से उसको मोह भी किसी पदार्थ में नहीं रहता है, इसी से उसकी दष्टि में जगत् भी नहीं प्रतीत होता है, और न वह ध्यान की तथा मुक्ति की इच्छा करता है । क्योंकि उसके मन की फुरना कोई भी बाकी नहीं रहती है ।। १४ ॥
मूलम्। येन विश्वमिदं दृष्टं स नास्तीति करोतु वै । निर्वासनः कि कुरुते पश्यन्नपि न पश्यति ॥ १५ ॥
पदच्छेदः । येन, विश्वम्, इदम्, दृष्टम्, सः, न, अस्ति, इति, करोतु, वै, निर्वासनः, किम्, कुरुते, पश्यन्, अपि, न, पश्यति ।। अन्वयः। शब्दार्थ ।। अन्वयः ।
शब्दार्थ । येन=जिस पुरुष करके
अस्ति है इदम् यह
वै-निश्चय करके विश्वम्-विश्व घट, पट आदि निर्वासनः वासना-रहित पुरुष दृष्टम् देखा गया है
कि करते- क्या करता है अर्थात सः वह
तो कुछ भी नहीं करता है इति ऐसा
सः वह करोतु-जाने कि
पश्यन्-देखता हुआ तत्-वह अर्थात् विश्व
अपि भी न-नहीं
| न पश्यति नहीं देखता है ।।