________________
मत्रहवाँ प्रकरण ।
२५५
अन्वयः।
न हर्षयन्ति= / नहीं हर्षको
शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ। अमी-ये
सल्लकी के के अपि कोई भी
सल्लकीपल्लवप्रीतम्२ पत्तों से विषयः विषय
(प्रसन्न हुए न जातु-कभी नहीं
इमम् हाथी को स्वारामम्-स्वात्मारामको
निम्बपल्लवाः नीम के पत्ते हर्षयन्ति हर्पित करते हैं इव-जैसे
। प्राप्त करते भावार्थ । हे शिष्य । जो पुरुष अपने आत्मा में ही रमण करे, उसका नाम आत्माराम है । वह आत्माराम कदापि विषयों की प्राप्ति होने से और उनके भोगने से हर्ष को नहीं प्राप्त होता है। क्योंकि वह विषयों को तुच्छ जानता है । अर्थात् विषय-जन्य सुख को वह मिथ्या जानता है और विषय-भोग भी उस आत्माराम को हर्ष-युक्त नहीं कर सकते हैं। क्योंकि अपनी सत्ता से रहित हैं । जैसे सल्लकी जो मधुर रसवाली बेलि है, उस बेलि के पत्ते जिस हस्ती ने खाए हैं उसको कटु-रसवाले नीम के पत्ते हर्ष को प्राप्त नहीं कर सकते हैं वैसे जिसने आत्मानन्द का अनुभव किया है, उसको विषयानन्द नहीं आनन्दित कर सकता है ॥ ३ ॥
मूलम् । यस्तु भोगेषु भुक्तेषु न भवत्यधिवासितः। अभुक्तेषु निराकाङ्क्षी तादृशो भवदुर्लभः ॥ ४॥