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सत्रहवाँ प्रकरण ।
२५९ च-और
धन्यः धन्य पुरुष वह है तस्य-उसकी
चम्जो स्थितौ स्थिति में
यथाजीविकया
- यथाप्राप्त आजीद्वेषः द्वेष
विका द्वारा न-नहीं है
यथासुखम्-सुखपूर्वक तस्मात्-इस कारण
आस्ते-रहता है ।।
भावार्थ । अष्टावक्रजी कहते हैं कि हे पुत्र ! विश्व के लय होने की इच्छा जिस विद्वान् को नहीं है, और विश्व के स्थिर रहने में जिसको द्वेष नहीं है, अर्थात् प्रपञ्च रहे अथवा नष्ट हो जाय,
और जो अपने को विश्व का साक्षी अधिष्ठान समझकर स्थित है, वही विद्वान् कृतकृत्य है, धन्य है, पूजने योग्य है ।।७।।
मूलम् । कृतार्थोऽनेन ज्ञानेत्येवं गलितधीः कृती । पश्यञ्च्छृण्वनस्पृशजिघ्रन्नश्नन्नास्तेयथासुखम् ॥ ८ ॥
__ पदच्छेदः । कृतार्थः, अनेन, ज्ञानेन, इति, एवम्, गलितधीः, कृती, पश्यन्, शृण्वन्, स्पृशन्, जिघ्रन्, अश्नन्, आस्ते, यथासुखम् ।। अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ । अनेन इस
गलितधी:- गलित हुई है बुद्धि ज्ञानेन-ज्ञान से
गलितधाः । जिसकी, ऐसा कृतार्थ-मैं कृतार्थ हूँ
कृति-ज्ञानी पुरुष इति एवम्-इस प्रकार
पश्यन् देखता हुआ