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निराकाक्षा । रहित
सत्रहवाँ प्रकरण ।
२५७ अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ । बुभुक्षः=भोग की इच्छावाला
हि-परन्तु अपि और
भोग और मोक्ष
भोगमोक्ष मुमुक्षुः मोक्षकी इच्छावाला
32 की आशा से इह इस संसारे संसार विषे
विरलः कोई बिरला ही दृश्यते-देखे जाते हैं
महाशयः-महापुरुष है ॥
भावार्थ । इस संसार में मुमुक्ष अनेक प्रकार के दिखाई पड़ते हैं, परन्तु जो भोग और मोक्ष दोनों की आकाङक्षा से रहित हो और महान् परिपूर्ण ब्रह्म विषे शुद्ध अन्तःकरण से स्थित हो, सो दुर्लभ है।
गीता में भी भगवान् ने कहा हैमनुष्याणां सहस्रषु कश्चिद्यतति सिद्धये । यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥ १ ॥
हजारों मनुष्यों में से कोई एक मनुष्य अन्तःकरण की शुद्धि के लिये यत्न करता है, फिर उनमें से भी कोई एक विरला पुरुष आत्मा को यथार्थ जानता है ॥ ५ ॥
मूलम् । धर्मार्थकाममोक्षेषु जीविते मरणे तथा। कस्याप्युदारचित्तस्य हेयोपादेयता नहि ॥ ६ ॥
पदच्छेदः । धर्मार्थ काममोक्षेषु, जीविते, मरणे, तथा, कस्य, अपि, उदारचित्तस्य, हेयोपादेयता, न हि ।।