________________
चौदहवाँ प्रकरण ।
२०५ आत्मा के स्वरूप का बोधक जो वाक्य है, उसका नाम अवान्तर्वाक्य है । जैसे
"सत्यं ज्ञानमनंतं ब्रह्म" आत्मा ब्रह्मसद्रूप है, ज्ञान-स्वरूप है, अनन्त-स्वरूप है ।
यह वाक्य तो केवल आत्मा के स्वरूप को ही बोधन करता है, इसी वास्ते इसका नाम अवान्तवाक्य है।
अभेदबोधकं वाक्यं महावाक्यम् ।
अभेद का बोधक जो वाक्य है, उसी का नाम महावाक्य है । जैसे
ब्रह्माहमस्मि। मैं ही ब्रह्म हूँ। अयमात्माब्रह्म। यह अपना आत्मा ही ब्रह्म है । तत्त्वमसि ।
तत् = वही अर्थात् ईश्वर । त्वं = तू अर्थात् जीव । असि = है, ये सब वाक्य जीव और ईश्वर की अभेदता को ही बोधन करते हैं, इसी से इनका नाम महावाक्य है। ___अब लक्षणा को दिखाते हैं
पद के अर्थ का ज्ञान दो तरह से होता है। एक तो शक्तिवृत्ति करके होता है, जैसे किसी ने किसी से कहा