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सत्रहवाँ प्रकरण।
मूलम् । तेन ज्ञानफलं प्राप्तं योगाभ्यासफलं तथा । तृप्तःस्वच्छेन्द्रियो नित्यमेकाकोरमते तु यः ॥ १ ॥
पदच्छेदः । तेन, ज्ञानफलम्, प्राप्तम्, योगाभ्यासफलम्, तथा, तृप्तः, स्वच्छेन्द्रियः, नित्यम्, एकाकी, रमते, तु, यः ॥ अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ यः जो पुरुष
तेन-उसी करके नित्यम्-नित्य
ज्ञानफलम् ज्ञान का फल तृप्तः तृप्त है
तथा और स्वच्छेन्द्रियः शुद्ध इन्द्रियवाला है
| योगाभ्यासफलम् च-और
का फल एकाकी अकेला
प्राप्तम्=पाया गया है । रमते-रमता है
भावार्थ । अब विंशति श्लोकों करके सत्रहवें प्रकरण का प्रारम्भ करते हैं। रइतपुरुषों की प्रवृत्ति ब्रह्म-विद्या में कराने के लिये और आत्मज्ञान का फल दिखाने के वास्ते गुरु प्रथम ज्ञान की दशा को दिखाते हैं ।
[योगके अभ्यास