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अष्टावक्र गीता भा० टी० स०
उत्तम बुद्धिमान् शिष्य सामान्य उपदेश करके आत्मबोध को प्राप्त हो जाता है अर्थात् कृतार्थ हो जाता है । सतयुग में केवल ओंकार के उपदेश से उत्तम शिष्य कृतार्थ हो गये हैं और निकृष्टबुद्धिवाला शिष्य मरणपर्यन्त उपदेश को सुनता रहता है, पर उसको यथार्थ बोध नहीं होता है । जैसे विरोचन को ब्रह्मा ने अनेक बार उपदेश किया तो भी वह बोध को न प्राप्त हुआ ।
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संसार में तीन प्रकार के अधिकारी हैं । एक तो उत्तम अधिकारी है, जिसको एक बार गुरु के मुख से महावाक्य के श्रवण करने से बोध हो जाता है । दूसरा मध्यम अधिकारी है, जिसको बारबार श्रवण, मननादिकों के करने से बोध होता है । तीसरा निकृष्ट अधिकारी है, जो चिरकाल तक शास्त्रों का श्रवण और उपासना आदिकों को करके बोध को प्राप्त होता है ।
मोक्ष के अधिकारियों को दिखलाते हैं
शान्तो दान्तः क्षमी शूरः सर्वेन्द्रियसमन्वितः । असक्तो ब्रह्मज्ञानेच्छुः सदा साधुसमागमः ॥ १ ॥ साधुबुद्धिः सदाचारी यो भेदः सर्वदैवते ।
आशा पाशविनिर्मुक्तस्त्वेते मोक्षाधिकारिणः ॥ २ ॥ जो शान्तचित्त है, जो इन्द्रियों को दमन करनेवाला है, परंतु संपूर्ण इन्द्रियों करके युक्त है, जो पदार्थों में आसक्ति से रहित है, जो ब्रह्मज्ञान की इच्छावाला होकर सदैव महात्माओं का संग करता है, जो सुन्दर बुद्धिवाला और