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सोलहवाँ प्रकरण।
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तात-हे प्रिय !
मूलम्। आचक्ष्व शृणु वा तात नानाशास्त्राण्यनेकशः । तथापि न तव स्वास्थ्यं सर्वं विस्मरणादृते ॥१॥
पदच्छेदः । आचक्ष्व, शृणु, वा तात, नानाशास्त्राणि, अनेकशः, तथा, अपि, न, तव, स्वास्थ्यम्, सर्वविस्मरणात्, ऋते ।। अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः ।
शब्दार्थ।
तथा अपि-परन्तु अनेकशः बहुत प्रकार से
ऋते-विना नानाशा- अनेक शास्त्रों को
सर्ववि-_ सबके स्त्राणि
स्मरणात् । विस्मरण से आचक्ष्व-कह
तव-तुझको
स्वास्थ्यम्-शान्ति शृणु-सुन
नन्न होगी। भावार्थ । तत्त्व-ज्ञान करके सम्पूर्ण प्रपञ्च और तृष्णानाश ही का नाम मुक्ति है । अब इसी वार्ता को आगे वर्णन करते हैं
अष्टावक्रजी कहते हैं कि हे तात ! चाहे तुम अनेक शास्त्रों को
वान्या