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सोलहवाँ प्रकरण ।
२४१ पदच्छेदः । आयासात्, सकलः, दुःखी, न, एनम्, जानाति, कश्चन, अनेन, एव, उपदेशेन, धन्यः, प्राप्नोति, निर्वृतिम्, अन्वयः। शब्दार्थ । । अन्वयः।
शब्दार्थ। आयासात् परिश्रम से
अनेनएव-इसी सकल-सब मनुष्य
उपदेशन-उपदेश से दुःखी दुःखी है
धन्यः सुकृती पुरुप एनम् इसको
निवृतिम् परम सुख का कश्चन कोई
प्राप्नोति प्राप्त होता है । न जानातिनहीं जानता है
भावार्थ । हे शिष्य ! सम्पूर्ण लोक शरीर के निर्वाह करने में ही दुःखी होते हैं । अर्थात् शरीर निर्वाहार्थ परिश्रम करने में ही दुःख उठाते हैं, परन्तु इस बात को नहीं जानते हैं कि परिश्रम ही दुःख का हेतु है, इसलिये महापुरुष शरीर के निर्वाह के लिये अति परिश्रम नहीं करते हैं। क्योंकि शरीर की रक्षा प्रारब्धकर्म आप ही कर लेता है, यत्न की कोई जरूरत नहीं होती है । ऐसा जानकर वे सदैव सुखी रहते हैं ।। ३ ।।
मूलम्। व्यापारेखिद्यते यस्तु निमेषोन्मेषयोरपि । तस्यालस्यधुरीणस्य सुखं नान्यस्यकस्यचित ॥ ४ ॥