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सोलहवां प्रकरण ।
२४७ लाओ, हम पाखाने जावेंगे। नौकर पानी लाया, राजा पाखाने गये। राजा साहब को दस्त पतले आते थे, इस कारण नल की मोहरी पर बैठकर जो पाखाना उन्होंने फिरा तो नीचे उस लड़के के ऊपर जाकर गिरा। उसका शिर, मुंह और सब कपड़े मैले से भर गये। राजा पाखाना फिरकर चले गये, तब लौंडी ने उसको किसी गंदी नाली के रास्ते से निकाल दिया । उस लड़के ने नदी पर जाकर स्नान किया और सब कपड़े साफ करके अपने घर को गया ।
दूसरे दिन फिर रानी ने लौंडी को उसके बुलाने के लिये भेजा। तब लड़के ने कहा कि एक दिन मैं रानी के पास गया और केवल दस-पाँच बातें मैंने उससे की तब उसका फल यह हुआ कि अपने सिर पर दूसरे का मेला पड़ा । जो रोज रोज उससे सम्बन्ध करता है, न मालूम उसकी क्या गति होगी। मुझको तो वह पाखाना न भूला है, न भलेगा। मैं अब कदापि न जाऊँगा । इस प्रकार की जब विषय-भोग में दोष-बुद्धि होती है, तब फिर कदापि उसकी विषयभोग में राग-पूर्वक प्रवृत्ति नहीं होती है। ऐसे ही विद्वान् भी बालक की तरह शुभ-अशुभ के चिन्तन से रहित होकर केवल प्रारब्ध-वश से कदाचित् प्रवृत्त होता है, कदाचित् निवृत्त भी हो जाता है, परन्तु रागद्वेष करके न तो वह प्रवृत्त होता है, और न वह निवृत्त होता है ।। ८ ।।
मूलम् । हातुमिच्छति संसारं रागी दुःखजिहासया । वीतरागो हि निर्दुःखस्तस्मिन्नपि न खिद्यति ॥ ९ ॥