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पन्द्रहवां प्रकरण ।
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पदच्छेदः । तव, एव, अज्ञानतः, विश्वम्, त्वम्, एकः, परमार्थतः, त्वत्तः, अन्यः, न, अस्ति, संसारी, न, असंसारी, च, कश्चन ।। अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ । तव एव-तेरे ही
त्वम्-तू अज्ञानतः अज्ञान से
एक:-एक है विश्वम्-विश्व है
अतः इसलिये अन्यः दूसरा
त्वत्तः तुझसे कश्चन-कोई
अस्ति है न संसारीन संसारी जीव
न असंसारी-र
न संसारी च और
1 ईश्वर परमार्थतः परमार्थ से
अस्ति है ॥
भावार्थ।
हे शिष्य ! तुम्हारे ही अज्ञान से यह जगत् प्रतीत होता है और तुम्हारे ही आत्मज्ञान से यह नाश होता है ।
प्रश्न-अज्ञान का स्वरूप क्या है ? और ज्ञान का स्वरूप क्या है ?
उत्तर-अनादिभावत्वे सति ज्ञाननिवर्त्यवमज्ञानम् ।
जो अनादि हो, और भावरूप हो, अर्थात् अभावरूप न हो, और ज्ञान करके निवृत्त हो जाते, उसी का नाम अज्ञान है ।। १ ।।
अज्ञाननाशकत्वे सति स्वात्मबोधकत्वं ज्ञानम् ।