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पन्द्रहवाँ प्रकरण ।
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श्रेष्ठाचारवाला है, जो संपूर्ण देवताओं में एक ही चेतन को जानता है, जो विषयों के आशा-रूपी पाश से रहित है, वह मोक्ष का अधिकारी है । जिसमें ऊपर कहे हुए गुणों में से कोई भी गुण नहीं घटता है, वह मोक्ष का अधिकारी नहीं है ।। १ ।।
मूलम् ।
मोक्षो विषयवैरस्यं बन्धो वैषयिका रसः ।
एतावदेव विज्ञानं यथेच्छसि तथा कुरु ॥ २ ॥ पदच्छेदः ।
मोक्षः, विषयवैरस्यम्, बन्धः, वैषयिकः, रसः, एतावत्, एव, विज्ञानम्, यथा, इच्छसि तथा कुरु ॥
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
विषयवैरस्यम् = विषयों से वैराग्य
मोक्ष =मोक्ष है
वैषयिकः = विषय - सम्बन्धी
रस:रस
बन्ध:-बन्ध है
शब्दार्थ |
एतावत् एव = इतना ही विज्ञानम् = ज्ञान है
यथा इच्छसि = जैसा चाहे
तथा वैसा
कुरु = ( तू ) कर
भावार्थ |
अब बंध और मोक्ष के उपाय को संक्षेप से निरूपण करते हैं
विषयों में जो अनुराग है वही बंध है और विषयों में जो अनुराग का त्याग है, वही मोक्ष है । ऐसा कहा भी हैमन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।