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________________ पन्द्रहवाँ प्रकरण । २१३ श्रेष्ठाचारवाला है, जो संपूर्ण देवताओं में एक ही चेतन को जानता है, जो विषयों के आशा-रूपी पाश से रहित है, वह मोक्ष का अधिकारी है । जिसमें ऊपर कहे हुए गुणों में से कोई भी गुण नहीं घटता है, वह मोक्ष का अधिकारी नहीं है ।। १ ।। मूलम् । मोक्षो विषयवैरस्यं बन्धो वैषयिका रसः । एतावदेव विज्ञानं यथेच्छसि तथा कुरु ॥ २ ॥ पदच्छेदः । मोक्षः, विषयवैरस्यम्, बन्धः, वैषयिकः, रसः, एतावत्, एव, विज्ञानम्, यथा, इच्छसि तथा कुरु ॥ अन्वयः । शब्दार्थ | अन्वयः । विषयवैरस्यम् = विषयों से वैराग्य मोक्ष =मोक्ष है वैषयिकः = विषय - सम्बन्धी रस:रस बन्ध:-बन्ध है शब्दार्थ | एतावत् एव = इतना ही विज्ञानम् = ज्ञान है यथा इच्छसि = जैसा चाहे तथा वैसा कुरु = ( तू ) कर भावार्थ | अब बंध और मोक्ष के उपाय को संक्षेप से निरूपण करते हैं विषयों में जो अनुराग है वही बंध है और विषयों में जो अनुराग का त्याग है, वही मोक्ष है । ऐसा कहा भी हैमन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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