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चौदहवाँ प्रकरण ।
२०३ पदच्छेदः । क्व, धनानि, क्व, मित्राणि, क्व, मे, विषयदस्यवः, क्व, शास्त्रम्, क्व, च, विज्ञानम्, यदा, मे, गलिता, स्पृहा ।। अन्वयः। शब्दार्थ ।। अन्वयः।
शब्दार्थ । यदा-जब
मित्राणि-मित्र है मे मेरी
क्व-कहाँ स्पृहा-इच्छा
विषयदस्यवः-विषय-रूपी चोर है गलिता-गलिता हो गई है तदातब
क्व-कहाँ मे-मेरे को
शास्त्रम्-शास्त्र है क्व-कहाँ
च-और धनानिधन है
क्व-कहाँ क्व-कहाँ
विज्ञानम्-ज्ञान है
भावार्थ । जनकजी कहते हैं कि विषयों की भावना से शून्य चित्तवाला मैं हूँ, मुझ पूर्णात्मदर्शी को जब विषय-भोगों की इच्छा नष्ट हो गई है, तब मेरा धन कहाँ है ? मेरे मित्र कहाँ हैं ? शास्त्र का अभ्यास कहाँ है ? और निदिध्यासनादिक कहाँ है ? मेरी तो किसी में भी आस्थाबुद्धि नहीं रही ।। २ ।।
मूलम् । विज्ञाते साक्षिपुरुष परमात्मनि चेश्वरे । नैराश्ये बन्धमोक्षे च न चिन्तामुक्तये मम ॥३॥