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चौदहवाँ प्रकरण |
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अर्थ में वक्ता के तात्पर्य की असिद्धि हो, वहाँ पर ही लक्षणा होती है । 'गंगायां घोषः' यहाँ पर गंगा के प्रवाह में मेरा ग्राम है. ऐसा वक्ता का तात्पर्य नहीं है, क्योंकि ऐसा हो नहीं सकता है, इसी वास्ते - 'गंगायां घोष:' में लक्षणा होती है ।
अत्र लक्षणा के भेद को दिखलाते हैं
वाच्यार्थमशेषतया परित्यज्य
तत्सम्बन्धिन्यर्थान्तरे
वृत्तिर्जहल्लक्षणा ।
जहाँ पर वाच्यार्थ का समग्र रूप से त्याग करके तत्सम्बन्धी अर्थान्तर में वृत्ति हो, वहाँ पर जहल्लक्षणा होती है । जैसेगंगायां घोषः । यहाँ पर गंगा पद का वाच्यार्थ जो प्रवाह है, उसका समग्र रूप से त्याग करके उसके साथ सम्बन्धवाला जो तीर है, उस तीर में गंगा पद की लक्षणा होती है, अर्थात् गंगा के तौर पर इसका ग्राम है । घोष नाम अहीरों के ग्राम है ।
वाच्यार्थापरित्यागेन तत्सम्बन्धिन्यर्थान्तरे वृत्तिरजहल्लक्षणा ।
जहाँ पर वाच्यार्थ का त्याग न करके उसके सम्बन्धवाले का भी ग्रहण हो, वहाँ पर अजहल्लक्षणा होती है ।
किसी के गृह में दण्डी संन्यासियों का निमन्त्रण था । वहाँ पर जाकर दण्डी लोग बाहर बैठे । जब भोजन तैयार हुआ, तब मालिक ने अपने नौकर से कहा कि - यष्टी प्रवेशय । अर्थात् लाठी का भीतर प्रवेश कराओ ।
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