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चौदहवाँ प्रकरण ।
२०९ होता है, सो जिस विद्वान् ने महाकाव्यों करके और भागत्यागलक्षणा करके जीव ईश्वर की अभेदता को जान लिया है, वही मुक्त है, उसको मुक्ति की कोई चिन्ता नहीं है ।। ३ ।।
मूलम् । अन्तर्विकल्पशून्यस्य बहिः स्वच्छन्दचारिणः । भ्रान्तस्येव दशास्तास्तास्तादृशा एव जानते ॥ ४ ॥
पदच्छेदः । अन्तर्विकल्पशून्यस्य, बहिः; स्वच्छन्दचारिणः, भ्रान्तस्य, इव, दशाः, ताः, ताः, तादृशा, एव, जानते ॥ अन्वयः। __ शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ। स्वच्छन्द-_ [ स्वतंत्र चलनेवाले चारिणः । की
ताः ता:-उन उन च-और (जो)
दशा:-दशाओं को बहिबाहर
. वैसे ही दशावाले
जो अन्तःकरण
अन्तर्विकल्प_) में विकल्प से ।
शून्यस्य । शून्य है
__ तादृशाःएब- 1 पुरुष
भ्रान्तस्य इव
भ्रान्त हुए पुरुष
41 की नाई है ऐसे
जानते जानते हैं ।
भावार्थ । जिस पुरुष का अन्तःकरण विकल्प अर्थात् संकल्प से रहित है, अर्थात् जिसको कोई भी विषय-वासना भीतर से